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लाख कोशिशों के बाद मोदी सरकार ने राज्यों को GST से हुए नुकसान से राहत देने का ढूंढा ये रास्ता

लाख कोशिशों के बाद मोदी सरकार ने राज्यों को GST से हुए नुकसान से राहत देने का ढूंढा ये रास्ता
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Anuj Maurya | भाषा | Updated: 15 Oct 2020, 09:30:00 PM

जीएसटी काउंसिल की बैठक में फैसला हुआ था कि जीएसटी क्षतिपूर्ति के लिए राज्यों की तरफ से केंद्र सरकार लोन लेगी। हालांकि, इससे कुछ राज्य सहमत नहीं थे। अब ये तय हुआ है कि राज्यों की तरफ से केंद्र सरकार लोन लेगी।

GST

जीएसटी क्षतिपूर्ति के मुद्दे को सुलझाने की दिशा में पहल करते हुये केन्द्र सरकार ने माल एवं सेवाकर (जीएसटी) राजस्व में संभावित कमी की भरपाई के लिये राज्यों की तरफ से खुद 1.1 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लेने की घोषणा की है। वित्त मंत्रालय ने बृहस्पतिवार को इस संबंध में वक्तव्य जारी किया है। कोविड-19 संकट के बीच अर्थव्यवस्था में नरमी से माल एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह में कम रहा है। इससे राज्यों के बजट पर असर पड़ा है।

राज्यों ने वैट समेत अन्य स्थानीय कर्ज के एवज में जीएसटी को स्वीकार किया था। उन्होंने जुलाई 2017 में नई अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था इस शर्त पर स्वीकार की थी कि राजस्व संग्रह में किसी भी प्रकार की कमी होने पर उसकी भरपाई अगले पांच साल तक केंद्र सरकार करेगी। इस कमी को पूरा करने के लिये बाजार से कर्ज लेने का विकल्प राज्यों को दिया गया था। लेकिन कुछ राज्य इससे सहमत नहीं थे। वित्त मंत्रालय ने बयान में कहा कि राज्यों को मौजूदा कर्ज सीमा के अलावा 1.1 लाख करोड़ रुपये का ऋण लेने को लेकर विशेष व्यवस्था की पेशकश की गयी थी।

इसमें कहा गया है, ‘‘विशेष व्यवस्था के तहत जीएसटी राजस्व संग्रह में अनुमानित 1.1 लाख करोड़ रुपये (यह मानते हुये कि सभी राज्य इसमें शामिल होंगे) की राजस्व क्षतिपूर्ति के लिये भारत सरकार उपयुक्त किस्तों में कर्ज लेगी।’’ मंत्रालय ने कहा कि इस तरह जो कर्ज लिया जाएगा, उसे जीएसटी क्षतपूर्ति उपकर जारी करने के बदले में राज्यों को दिया जाता रहेगा। हालांकि, विज्ञप्ति में यह नहीं बताया गया है कि इस कर्ज राशि पर मूल और ब्याज का भुगतान कौन करेगा। वित्त मंत्रालय द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि राज्यों के लिये केन्द्र द्वारा कर्ज लेने पर पूरी राशि के लिये एक ही ब्याज दर को सुनिश्चित किया जा सकेगा और इस तरह के कर्ज का भुगतान करने में भी सुविधा होगी। बयान में कहा गया है कि इस कर्ज से भारत सरकार के राजकोषीय घाटे पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

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‘‘जो राशि ली जाएगी, वह राज्य सरकारों की पूंजी प्राप्ति में परीलक्षित होगी और उनके राजकोषीय घाटों के वित्त पोषण का हिस्सा होगी।’’ इसमें कहा गया है, ‘‘इस कदम से सरकारों (राज्य एवं केंद्र) के कर्ज में बढ़ोतरी नहीं होगी… जिन राज्यों को कर्ज की इस विशेष व्यवस्था से लाभ होगा, वे राज्य संभवत: राज्य सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के 2 प्रतिशत अतिरिक्त कर्ज की सुविधा के तहत कम कर्ज उठायेंगे।’’ आत्म निर्भर भारत पैकेज के तहत राज्यों को कर्ज लेने की सीमा उनके जीएसडीपी का 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 5 प्रतिशत कर दी गई थी। जीएसटी लागू करते हुये, जुलाई 2017 में, राज्यों को नई कर व्यवस्था के क्रियान्वन से अगले पांच साल तक 14 प्रतिशत वृद्धि के आधार पर राजस्व का वादा किया गया था।

इसमें किसी प्रकार की कमी की भरपाई विलासिता और समाज के नजरिये से अहितकर वस्तुओं पर जीएसटी उपकर लगाकर पूरा करने का प्रस्ताव किया गया था। लेकिन पिछले वित्त वर्ष से अर्थव्यवस्था में नरमी के कारण राजव संग्रह में कमी के चलते राज्यों की राजस्व क्षतिपूर्ति के लिये यह राशि कम पड़ रही है। इसकी भरपाई के लिये केंद्र ने राज्यों को बाजार से कर्ज लेने का प्रस्ताव किया था। यह कर्ज भविष्य में उपकर से होने वाली प्राप्ति एवज में लिया जा सकता था। इससे पहले, वित्त मंत्रालय ने कहा था कि 21 राज्यों ने कर्ज लेने के दो विकल्प में से पहले विकल्प का चयन किया है। हालांकि कांग्रेस, वाम दल और तृणमूल कांग्रेस शासित राज्य सरकारों ने कर्ज लेने का कोई भी विकल्प स्वीकार नहीं किया था। उल्लेखनीय है कि चालू वित्त वर्ष के दौरान कोविड- 19 महामारी के चलते लागू लॉकडाउन की वजह से अर्थव्यवस्था में गिरावट से जीएसटी राजस्व में बड़ी कमी आने का अनुमान है।

चालू वित्त वर्ष के दौरान सभी राज्यों के राजस्व में यह कमी 2.35 लाख करोड़ रुपये तक रहने का अनुमान लगाया गया है। राजस्व की भरपाई के लिये केन्द्र सरकार ने अगस्त में राज्यों के समक्ष दो विकल्प रखे। या तो राज्य रिजर्व बैंक द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाले विशेष खिड़की से 97,000 करोड़ रुपये (अब 1.1 लाख करोड़ रुपये) कर्ज लेकर भरपाई करें या फिर पूरी 2.35 लाख करोड़ रुपये की राशि को बाजार से उठायें। केन्द्र ने राज्यों को इस कर्ज के भुगतान के लिये विलासिता और गैर- प्राथमिकता वाली अहितकर वस्तुओं पर लगने वाले जीएसटी उपकर को 2022 के बाद भी जारी रखने का प्रस्ताव किया है ताकि राज्य इससे प्राप्त राजस्व से अपने कर्ज का भुगतान कर सकें।

कुछ राज्यों के आग्रह पर 97,000 करोड़ रुपये के अनुमान को बढ़ाकर 1.10 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है। केन्द्र सरकार का मानना है कि चालू वित्त वर्ष में जीएसटी क्रियान्वयन की वजह से 1.10 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होने का अनुमान है जबकि कोविड- 19 सहित अन्य कारणों से इस वित्त वर्ष में राज्यों के राजस्व में कुल 2.35 लाख करोड़ रुपये की कमी आने का अनुमान है। इसी सिलसिले में राजस्व भरपाई के लिये दो विकल्प राज्यों के समक्ष रखा गये थे।

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Web Title : ‘center will take loans from states for gst compensation, fiscal deficit will not affect’
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