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रूद्रम-1 : पहली विकिरण रोधी मिसाइल में क्या है खास

रूद्रम-1 : पहली विकिरण रोधी मिसाइल में क्या है खास
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सात सितंबर को ‘हाइपरसोनिक टेक्नॉलोजी डेमोनस्ट्रेटर वीकल’ का परीक्षण किया गया था। उसके बाद अगले चार हफ्तों के दौरान डीआरडीओ ने सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस के परिवर्धित संस्करण का परीक्षण किया जो 400 किमी तक लक्ष्य को निशाना बना सकता है। इसके बाद परमाणु क्षमता संपन्न शौर्य सुपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण किया, जो आवाज की तुलना में दोगुनी से तिगुनी रफ्तार से चलने में सक्षम है।

Author जनसत्ता

October 13, 2020 3:25 AM

भारत ने वायुसेना के सुखोई -30 एमकेआइ लड़ाकू विमान से नई पीढ़ी की विकिरण रोधी मिसाइल का सफल परीक्षण किया।

हाल में भारत ने पहली स्वदेशी विकिरण रोधी मिसाइल ‘रूद्रम -1’ का सफल परीक्षण किया है। ‘डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गनाइजेशन’ (डीआरडीओ) की बनाई यह मिसाइल सुखोई-30 से दागी गई। यह परीक्षण वायुसेना के इस्तेमाल के लिए किया गया। दरअसल, वायुसेना के पास उपलब्ध विमानों में सुखोई-30 ऐसे विमान हैं, जिनमें नई पीढ़ी के विकिरण रोधी मिसाइलों का लॉन्च प्लेटफॉर्म लगाया गया है। वायुसेना के मुताबिक, जल्द ही इस मिसाइल को जगुआर, मिराज 2000 और तेजस से भी दागा जा सकेगा। इन विमानों में लॉन्च प्लेटफॉर्म लगाए जाएंगे।

यह मिसाइल बेहद खास है जिसे अपना निशाना खोजने में महारत हासिल है। रूद्रम-1 में खास खोजी प्रणाली (ट्रैकिंग सिस्टम) लगाई गई है। इसकी मदद के दुश्मन के निगरानी रडार (सर्विलांस रडार), ट्रैकिंग और संचार प्रणाली (कम्युनिकेशन सिस्टम) को आसानी से निशाना बनाया जा सकता है।

विकिरण रोधी मिसाइलें वे होती हैं, जिन्हें तैयार ही किया गया कि दुश्मन की किसी भी संचार प्रणाली को ध्वस्त किया जाए। यह मिसाइल दुश्मन के रडार, जैमर्स और यहां तक कि बातचीत के लिए इस्तेमाल होने वाले रेडियो को भी निशाना बना सकती है। इन मिसाइलों में सेंसर्स लगे होते हैं जो विकिरण का स्रोत (रेडिएशन सोर्स) ढूंढ़ लेते हैं। उसके पास जाते ही मिसाइल फट जाती है। ऐसी मिसाइलों का इस्तेमाल किसी संघर्ष के शुरुआती दौर में होता है। इसके अलावा ये मिसाइलें अचानक आने वाली जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइलों के खिलाफ भी छोड़ी जा सकती हैं।

रूद्रम-1 या एनजीएआरएम में प्राथमिक निर्देश प्रणाली (प्राइमरी गाइडेंस सिस्टम) के तौर पर ‘आन-बोर्ड पैसिव होमिंग (पीएचएच)’ दिया है, जो ब्रॉडबैंड क्षमता से लैस है। इससे मिसाइलों को विकिरण वाले लक्ष्य को पहचानने या चुनने की क्षमता मिलती है। नई एनजीएआरएम डी-जे बैंड के बीच काम करती है और 100 किलोमीटर की दूर से पता लगा सकती है कि रेडियो फ्रीक्वेंसी कहां से आ रही है।

यह लक्ष्य को खोज निकालने वाली मिसाइल है। इसमें एक ‘रडार डोम’ भी है। इसकी मदद से जमीन पर मौजूद दुश्मन के रडार को ध्वस्त किया जा सकता है। रूद्रम-1 मिसाइल 100 से 250 किलोमीटर के दायरे में किसी भी लक्ष्य को ध्वस्त कर सकती है। मिसाइल की लंबाई करीब साढ़े पांच मीटर है और वजन 140 किलो है। रूद्रम-1 से दुश्मन के वायु रक्षा प्रणाली के साथ-साथ उन रडार केंद्रों को भी उड़ाया जा सकता है जो चिन्हित होने से बचने के लिए खुद को बंद (शटडाउन) कर लेते हैं।

रूद्रम-1 को लेकर भारत ने 35 दिनों में 10 मिसाइल के परीक्षण किए हैं। जल्द ही 800 किलोमीटर के दायरे में मार करने वाले ‘निर्भय’ सब-सोनिक क्रूज मिसाइल परीक्षण किया जाएगा। थल सेना और नौसेना में औपचारिक रूप से इसके शामिल किए जाने से पहले अंतिम बार इसका परीक्षण किया जाएगा। डीआरडीओ के द्वारा पिछले 35 दिनों के अंदर यह 11वां मिसाइल परीक्षण होगा। डीआरडीओ तेजी से सामरिक परमाणु और पारंपरिक मिसाइलों को विकसित करने पर जुटा हैं। करीब एक महीने के अंदर हर चार दिनों के अंतराल पर एक मिसाइल का परीक्षण किया गया है। रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक, पूर्वी लद्दाख में तनाव को देखते हुए डीआरडीओ को परियोजनाओं में तेजी लाने को कहा गया है।

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